आज की खेती केवल अन्न उगाने तक सीमित नहीं रह गई है। बदलते मौसम, घटती मिट्टी की उर्वरता और जलवायु परिवर्तन ने किसानों और समाज के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। ऐसे समय में कार्बन फार्मिंग एक नई दिशा की ओर कदम है। यह सिर्फ उत्पादन बढ़ाने का तरीका नहीं, बल्कि खेती को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया भी है।
कार्बन फार्मिंग किसानों को यह सिखाती है कि कैसे वे अपनी जमीन से सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकते हैं। यह पद्धति किसानों, व्यापारियों और समाज सभी के लिए लाभकारी है। इससे मिट्टी की ताकत बनी रहती है, फसल अधिक पौष्टिक होती है और साथ ही वातावरण में हानिकारक गैसें कम होती हैं। और यही कारण है कि इसे खेती की क्रांति कहा जा रहा है।

भारत में कार्बन फार्मिंग का बाज़ार लगातार उभर रहा है। flairinsights.com के मुताबिक यह 2023-2031 की पूर्वानुमानित अवधि के दौरान 12.58% की सीएजीआर (CAGR) से बढ़कर 2031 के अंत तक 190.14 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
कार्बन फार्मिंग क्या है?
कार्बन फार्मिंग मूल रूप से ऐसी खेती है जिसमें वातावरण से कार्बन को मिट्टी और पौधों में जमा किया जाता है। इसका उद्देश्य है न सिर्फ उत्पादन बढ़ाना है, बल्कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखना है। इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों के कम इस्तेमाल के साथ-साथ प्राकृतिक और जैविक तरीकों को भी अपनाया जाता है।
इस प्रक्रिया के जरिए मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं। साथ ही वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम होती है,जिससे जलवायु पर सकारात्मक असर पड़ता है। आसान शब्दों में कहें तो कार्बन फार्मिंग किसान, पर्यावरण और समाज तीनों के लिए काफी फायदेमंद है।
कैसे की जाती है कार्बन फार्मिंग?
कार्बन फार्मिंग अपनाने के लिए कुछ आसान और प्रभावी तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे किसान अपनी उपज और आय दोनों बढ़ा सकते हैं।
1. जैविक और हरी खाद: यह मिट्टी में कार्बन बढ़ाता है और रसायनों की आवश्यकता घटाता है।
2. मल्टी-क्रॉपिंग: खेत में एक साथ विभिन्न प्रकार की फसल उगाना मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और जलवायु के प्रतिकूल प्रभावों को कम करता है।
3. कवर क्रॉपिंग: यह मिट्टी की सतह को ढककर नमी बनाए रखता है और कार्बन संग्रहण में मदद करता है।
4. एग्रोफॉरेस्ट्री: फसलों के बीच पेड़-पौधे लगाना न केवल कार्बन कम करता है, बल्कि जैव विविधता को भी बढ़ाता है।
5. मिट्टी प्रबंधन: सतही कटाई और प्राकृतिक तरीके अपनाकर मिट्टी में कार्बन को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

कार्बन फार्मिंग के फायदे
कार्बन फार्मिंग से मिलने वाले लाभ व्यापक हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, फसल अधिक स्वस्थ और पौष्टिक होती है। इतना ही नहीं बल्कि रासायनिक खर्च कम होता है और पैदावार में सुधार आता है। साथ ही, किसान कार्बन क्रेडिट बेचकर अतिरिक्त पैदावार के साथ अधिक आय भी कमा सकता है। पर्यावरण के लिहाज से देखा जाएं तो कार्बन फार्मिंग, वातावरण से कार्बन को घटाता होता है।
कार्बन फार्मिंग से जलवायु संतुलित रहता है, जल स्तर सुरक्षित रहता है और जैव विविधता भी बढ़ती है। कार्बन फार्मिंग का यह तरीका समाज के लिए भी काफी फायदेमंद है। इससे अधिक पौष्टिक और सुरक्षित फसलें लोगों तक पहुंचती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों मजबूत होते हैं। इस तरह कार्बन फार्मिंग सिर्फ खेती का तरीका नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने का माध्यम भी बन चुकी है।

सरकार और अन्य कंपनियों की भूमिका
भारत में सरकार और कई कंपनियां कार्बन फार्मिंग को बढ़ावा देने में सक्रिय हैं। सरकार किसानों को ट्रेनिंग, वित्तीय सहायता और आधुनिक तकनीकें सिखाकर उन्हें इस नई खेती के तरीकों से जोड़ रही है। वहीं निजी कंपनियां किसानों को कार्बन क्रेडिट मार्केट, फाइनेंसिंग और ट्रेडिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। इस सहयोग से किसान अपनी खेती को और अधिक लाभकारी और टिकाऊ बना सकते हैं।
कार्बन फार्मिंग से देश के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिलती है। एग्रीबाज़ार और उसकी सहयोगी कंपनियां स्टारएग्री और एग्रीवाइज भी किसानों और व्यापारियों को अपनी कई विभिन्न कृषि तकनीकों और सेवाओं से जोड़ने का और कार्बन फार्मिंग जैसे कई नवाचारपूर्ण मॉडलों से किसानों को अवगत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
यह कंपनियां आधुनिक खेती की तकनीकें, फसल की बिक्री, वित्तीय सहायता, वेयरहाउसिंग और ट्रेडिंग जैसी कई सेवाएं प्रदान करती हैं। इससे किसान न केवल अपनी उपज बढ़ा सकते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकते हैं। व्यापारी और निवेशक भी इन मॉडलों के माध्यम से टिकाऊ कृषि में निवेश कर सकते हैं और निश्चित ही अच्छा लाभ कमा सकते हैं।