बिना जुताई खेती करने का अनोखा तरीका ‘जीरो टिलेज फार्मिंग’

बदलते समय और जलवायु परिवर्तन के दौर में कृषि क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। किसानों के लिए अब नई-नई तकनीकें और पद्धतियां अपनाना जरूरी हो गया है ताकि वे अपनी फसल उत्पादन को बढ़ा सकें और साथ ही पर्यावरण संरक्षण भी कर सकें। इन्हीं तकनीकों में से एक है ‘जीरो टिलेज फार्मिंग (नो-टिल फार्मिंग)’, जिसे बिना जुताई वाली खेती कहा जाता है। यह खेती का एक ऐसा तरीका है जो न सिर्फ भूमि की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखने में सहायता करता है, बल्कि लागत भी कम करता है।

जीरो टिलेज फार्मिंग क्या है?
जीरो टिलेज फार्मिंग में भूमि को जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। पारंपरिक खेती में बीज बोने से पहले भूमि को जुताई करना जरूरी होता है, लेकिन इस तकनीक में भूमि को बिना जोते ही ड्रिलिंग की मदद से सीधे मिट्टी के अंदर बीज बोए जाते हैं। इसके तहत फसल के अवशेषों को मिट्टी पर ही रहने दिया जाता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और जैविक गतिविधि में सुधार होता है। हालांकि यह तकनीक पारंपरिक टिलेज से बेहद अलग और किफायती है, लेकिन सभी प्रकार की फसलों के लिए उपयोगी नहीं है। इस तकनीक के जरिए गेहूं, चावल, चना, मक्का, सोयाबीन, जौ, सूरजमुखी, ज्वार, बाजरा, अल्फाल्फा आदि फसलों की खेती की जा सकती है।

जीरो टिलेज फार्मिंग के फायदे:
1. मिट्टी की संरचना: जुताई न करने से मिट्टी की संरचना और जीवांश तत्व नष्ट नहीं होते। मिट्टी के अंदर की जैविक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है जिससे मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है।
2. जल संरक्षण: जुताई न करने से मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। इससे किसान जल संसाधनों की बचत कर सकते हैं।
3. लागत में कमी: जुताई न करने से ट्रैक्टर और अन्य मशीनों का उपयोग कम होता है, जिससे ईंधन और श्रम की लागत में कमी आती है। साथ ही, कम कीटनाशकों और उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे कुल उत्पादन लागत कम हो जाती है।
4. पर्यावरण संरक्षण: जीरो टिलेज पद्धति मिट्टी के कटाव को रोकती है और कार्बन उत्सर्जन को कम करती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता।

जीरो टिलेज फार्मिंग के नुकसान:
1. मौसम की अनुकूलता का अभाव: जीरो टिलेज की खेती ज्यादातर सुखद मौसम में होती है। अगर मौसम अनुकूल नहीं होता है, तो पौधों की विकास में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
2. कीट-रोगों का संक्रमण: अगर सही प्रकार से प्रबंधन नहीं किया गया, तो जीरो टिलेज पर बीमारियों और कीटों का संक्रमण हो सकता है। 
3. पोषण की कमी: अगर मिट्टी में पोषण की कमी होती है, तो पौधों का सही विकास नहीं हो पाता है और उनकी उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।
4. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण भी जीरो टिलेज की उत्पादकता पर असर पड़ सकता है। यह पौधों की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है।

जीरो टिलेज फार्मिंग एक उन्नत, पर्यावरण-संवेदनशील और कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो यह किसानों को बेहतर उपज और बाजार में अच्छा मूल्य दिलाने में मदद करती है। एग्रीबाज़ार का डिजिटल प्लेटफॉर्म किसानों के लिए आधुनिक तकनीक और सेवाओं को आसान बना रहा है। जीरो टिलेज जैसी उन्नत खेती पद्धतियों के जरिए उत्पादन और आय बढ़ाने में किसानों की मदद करता है, उन्हें बेहतर जानकारी और समय पर मार्गदर्शन करता है।

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