ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे न केवल मानवी जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि कृषि क्षेत्र पर भी बुरा असर होता दिख रहा है। बढ़ते तापमान से मौसम और जलवायू में लगातार बदलाव हो रहे है, जिसके कारण किसानों की फसलें खराब हो रही हैं। किसानों को कई बार भारी बारीश, बाढ़, सूखा या कभी हीट वेव का भी सामना करना पड़ा है। परंतु अब किसान खेती के जरिए उन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने की कोशिश कर रहे हैं। कार्बन क्रेडिट के जरिए वे अपनी फसलों को मौसम की मार से बचाने में सफल हो रहे हैं। साथ ही उनके लिए यह कमाई का एक नया स्त्रोत भी बन गया है।
कार्बन क्रेडिट क्या है?
कार्बन क्रेडिट उस मंजूरी को दर्शाता है जो किसी व्यवसाय को कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा का उत्सर्जन करने के लिए मिलती है। एक क्रेडिट, एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर द्रव्यमान के उत्सर्जन की अनुमति देता है। औद्योगिक गतिविधियों के चलते पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं, उसे नियंत्रित कर जलवायु परिवर्तन को कम करना, यहीं कार्बन क्रेडिट का मुख्य उद्देश्य और प्रयास है।
कार्बन ट्रेडिंग से कृषि क्षेत्र को कैसे लाभ हो सकता है?
- भारत में कृषि क्षेत्र से बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता दिख रहा है। कार्बन क्रेडिट ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत होने के नाते, यह कृषि कार्बन को स्टोर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
- इसे कार्बन डाइऑक्साइड के आधार पर वातावरण से मिट्टी द्वारा संग्रहीत किया जा सकता है। साथ ही जुताई से लेकर ठूंठ के प्रबंधन तक की कृषि प्रक्रियाओं के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी की जा सकती है।
- मृदा कार्बन पृथक्करण के माध्यम से किसान जलवायु परिवर्तन को कम कर सकते हैं और मिट्टी में कार्बन की मात्रा में गुणात्मक रूप से वृद्धि कर भी सकते हैं।
- मृदा की कार्बन-भंडारण क्षमता में सुधार से उर्वरता, फसल की पैदावार, किसानों की आय, जल संरक्षण आदि में सुधार किया जा सकता है।
- किसान इन क्रेडिट को बाजार में बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। उन्हें ऐसी गतिविधियों को लागू करने और मृदा कार्बन में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- जलवायु और स्थिरता के बढ़ते महत्व के साथ निवेशकों, कर्मचारियों और इन क्रेडिट के लिए ग्राहकों की मांग में भी तीव्र वृद्धि होने की उम्मीद है।
- अक्षय ऊर्जा, वनीकरण, पारिस्थितिक बहाली, कृषि, अपशिष्ट प्रबंधन, आदि सहित विभिन्न गतिविधियाँ कार्बन क्रेडिट अर्जित करने के लिए सुयोग्य हो सकती हैं।
भारत कार्बन क्रेडिट का एक महत्वपूर्ण निर्यातक है और भारत में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र का लगभग 14% योगदान रहा है। कार्बन क्रेडिट के बहुमुखी लाभों को देखते हुए किसानों को इसके प्रति और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है। आने वाले सालों में कार्बन क्रेडिट का बाजार और विकसित होने की उम्मीद है। जानकारों के मुताबिक स्वैच्छिक कार्बन-ऑफसेट मार्केट 2022 में लगभग 2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 में लगभग 100 बिलियन डॉलर और 2050 तक लगभग 250 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।