कैसे करें फसल रोगों की पहचान और कब करें उर्वरक का प्रयोग

कृषि क्षेत्र में कीट-रोगों का सही समय पर पता लगाना और उनके उचित प्रबंधन के लिए आवश्यक कदम उठाना बेहद जरुरी है। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो फसलों की गुणवत्ता और उपज में भारी नुकसान हो सकता है। ऐसे में, एग्रीबाजार ऐप किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन कर उभरा है, जो अपनी फसल डॉक्टर सर्विस द्वारा स्वस्थ-बेहतर फसल पाने में सहायता करता है और समय रहते फसलों को कीट-रोगों से बचाता है।

एग्रीबाज़ार के कृषि तज्ञ किसी भी कीट, बीमारी या पोषक तत्वों की कमी के लिए तुरंत उपचार सुझाव देते हैं। इतना ही नहीं बल्कि एग्रीबाज़ार, इनपुट मार्केटप्लेस पर किसानों को सर्वोत्तम क्वालिटी के खाद, बीज, कीटनाशक एवं कृषि अदानें भी किफायती दामों पर उपलब्ध कराता है। बीज बोने से लेकर फसल कटाई तक हर पड़ाव पर किसानों की सहायता करता है। फसल रोगों की पहचान कर उसकी रोकथाम के लिए उचित सुझाव देता है।

कैसे करें फसल रोगों की पहचान – 

1. पत्तियों का निरीक्षण:- पत्तियों का रंग बदलना, धब्बे आना, सूखना या मुड़ना रोग के लक्षण हो सकते हैं। जैसे कि, पत्तियों पर पीले या भूरे धब्बे फंगल इन्फेक्शन का संकेत हो सकते हैं।
2. तनों-जड़ों की जांच:- तनों का सड़ना, कमजोर होना या जड़ों का काला होना भी रोग के संकेत हो सकते हैं। यह विशेष रूप से बैक्टीरियल और फंगल रोगों में देखा जाता है।
3. स्थिति का आकलन:- फूलों का गिरना, फलों का सड़ना या उनका आकार बदलना भी फसल रोगों का संकेत हो सकता है। यह लक्षण कीट संक्रमण या फंगल रोगों के कारण हो सकते हैं।
4. फसल वृद्धि निरीक्षण:- यदि फसल की वृद्धि धीमी हो रही है या पौधे कमजोर दिख रहे हैं, तो यह भी किसी रोग का लक्षण हो सकता है।
5. विशेषज्ञ सलाह:- अगर आपको किसी भी प्रकार का संदेह हो, तो कृषि विशेषज्ञ या स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से परामर्श लें।

कब करें उर्वरक का प्रयोग – 

1. उर्वरक का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जाँच करवा लें। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का पता लगने पर ही उर्वरक का सही उपयोग संभव है।
2. बीज बोने के समय, पौधों की वृद्धि के दौरान और फलन के समय उर्वरक की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता होती है।
3. नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों वाले उर्वरकों का सही समय पर उपयोग करें। फसल की आवश्यकता के अनुसार ही संतुलित उर्वरकों का चयन करें।
4. उर्वरक का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए उसे सिंचाई के साथ मिलाकर प्रयोग करे, इससे पौधों को पोषक तत्व अच्छी तरह से मिलते हैं।
5. फसल की अवस्था और मौसम के अनुसार उर्वरक का समय-समय पर उपयोग करें। अधिकतर फसलें वृद्धि के दौरान और फलन के समय उर्वरक की आवश्यकता होती है।
6. जैविक उर्वरक का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरकता और पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है। उर्वरक के प्रयोग के समय उसके पैकेट पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।

भारतीय कृषि उत्पादन क्षमता एवं अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए फसल निगरानी, कीट-रोग प्रबंधन, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग महत्वपूर्ण है। हालांकि, कृषि के तहत लगभग 60% क्षेत्र में, प्रत्यक्ष रूप से निगरानी करना काफी कठिन है, लेकिन रिमोट सेंसिंग उपग्रह और मशीन लर्निंग हमारी मदद कर सकते हैं। साथ ही स्थायी कृषि हेतु इनपुट प्रदान करने के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी का भी उपयोग किया जा सकता है, ऐसे में एग्रीबाज़ार निश्चित रुप से किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है।

More Articles for You

Transforming Indian Agriculture with Data-Driven Farming for Smallholders!

In India, smallholder farmers—those owning less than 2 hectares of land—form agriculture’s foundation. With over 86% of all farmers falling …

फसल चक्र: जमीन की सेहत और किसान की समृद्धि का सूत्र

खेती का भविष्य केवल पैदावार पर नहीं, बल्कि मिट्टी की सेहत, संसाधनों के संतुलित उपयोग और खेती के तौर-तरीकों में …

WhatsApp Connect With Us