धान कटाई के बाद पराली को जलाना भले ही सबसे आसान लगता हो, लेकिन यह मिट्टी, पर्यावरण और मानवी स्वास्थ्य के लिहाज से काफी नुकसानदायक है। अगले फसल की जल्द से जल्द तैयारी करने के लिए किसान आमतौर पर पराली को जला देते हैं, जिसका परिणाम न केवल पर्यावरण, फसलों पर होता हैं बल्कि मानवी स्वास्थ्य पर भी होता है।
पराली या धान के अवशेषों को जलाने से देश में बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलता है। वहीं तापमान बढ़ने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव जैसे केंचुआ, राइजोबिया तथा पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति और उत्पादकता घटकर उपजाऊ खेती बंजर भी हो सकती है। जिसके बाद रासायनिक खाद भी फसल की उत्पादकता नहीं बढ़ा पाती है।
इसे रोकने के लिए भारत सरकार ने कई दंडात्मक प्रावधान भी लागू किए, लेकिन इसके बावजूद पैसा और समय बचाने के लिए किसान पराली एवं अन्य धान के अवशेषों को खेतों में ही जला रहे हैं। इन्हें जलाने की बजाय उपयोग में लाया जा सके इसलिए सरकार की तरफ से कई कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार के इन प्रयासों में एग्रीबाज़ार भी अपनी नई कृषि तकनीकों एवं सर्वोत्तम सुविधाओं के साथ निरंतर किसानों की सहायता कर रहा है।
एग्रीबाज़ार की सुविधाएं –
- एग्रीबाज़ार की फसल पूर्व सुविधाओं के साथ किसान सही समय पर सही फसल की बुआई कर अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं।
- मॉनसून पूर्व अनुमान, मिट्टी परिक्षण, फसल डॉक्टर, भूमि और खसरा पंजीकरण, रिकॉर्ड आधारित कृषि नमुना जैसी कई सुविधाओं के साथ एग्रीबाज़ार किसानों की फसल की बुआई से लेकर उचित मंडी भाव मिलने तक सहायता करता हैं।
- ड्रोन, सैटैलाइट जैसी आधुनिक तकनीकों के जरिए फसलों की निगरानी करता है।
पराली को जलाना एकमेव समाधान नहीं हैं बल्कि और भी कई कारगर विकल्प हैं, जिनके प्रयोग से किसान कई गंभीर समस्याओं को रोक सकते हैं।
- किसान पराली को डीकंपोस्ट कर आर्गेनिक खाद बनाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा फसल के स्वरूप में बदलाव भी एक अहम समाधान हो सकता है।
- पराली से होनेवाले प्रदूषण और भूजल बर्बादी को रोकने के लिए धान की सीधी बिजाई पद्धति में कम अवधि वाली किस्में एक सस्ता और कारगर उपाय हो सकता है।
- किसान, मशीनीकरण द्वारा फसल अवशेषों को खेत से बाहर निकाल कर उनका उद्योगों आदि में उपयोग करके अधिक कमाई कर सकते हैं।
- किसान गेहूं – धान फसल चक्र में हरी खाद के लिए ढ़ेंचा, मुँग आदि फसल उगा सकते है।