मौजूदा दौर में बदलते मौसम, प्रदूषण की चुनौतियां, निरंतर बढ़ती आबादी और बढ़ती खाद्य मांग को देखते हुए हाइड्रोपोनिक खेती एक अत्याधुनिक और प्रभावी विकल्प के रूप में उभर रही है। यह तकनीक टिकाऊ, सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन का सबसे विश्वसनीय साधन बनती जा रही है। यह एक ऐसी आधुनिक कृषि पद्धति है जो मिट्टी की बजाय पोषक तत्वों से भरपूर पानी पर आधारित है, जो खेती की पारंपरिक परिभाषा को ही बदल रही है। इस तकनीक से न केवल घर में ताज़ा और स्वच्छ भोजन उपलब्ध होता है, बल्कि यह शहरी लोगों को खेती से जोड़ने का भी एक बढ़िया माध्यम है।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम्स एक पूर्णतः नियंत्रित वातावरण प्रदान करते हैं। क्योंकि यह खेती बंद कमरे, छत, बालकनी या ग्रीनहाउस में की जाती है, जिसके चलते बाहरी कीट, रोगजनक जीवाणु और मौसम से जुड़ी समस्याएं बहुत कम हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती या बहुत ही न्यूनतम मात्रा में उपयोग किया जाता है। यह सिस्टम न केवल पौधों को सुरक्षित रखता है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी एक स्वस्थ विकल्प प्रदान करता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक धीरे-धीरे भारत में लोकप्रिय हो रही है और किसानों के साथ शहरी लोगों को भी आकर्षित कर रही है।

हाइड्रोपोनिक खेती कैसे की जाती है?हाइड्रोपोनिक खेती में पाइप का प्रयोग करके पौधों को उगाया जाता है। पाइप में कई छेद बने रहते हैं, जिसमें पौधे लगाए जाते हैं। पौधों की जड़ें पाइप के अंदर पोषक तत्वों से भरे जल में डूबी रहती है। इस पद्धति में फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्निशियम, कैलशियम, पोटाश, जिंक, सल्फर, आयरन, आदि कई पोषक तत्व एवं खनिज पदार्थों को एक निश्चित मात्रा में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है। इस घोल को निर्धारित समय के अंतराल पर पानी में मिलाया जाता है, जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम में हम जिन पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं, वे विभिन्न स्रोतों से आ सकते हैं, जैसे मछली का मलमूत्र, बत्तख की खाद, या रासायनिक उर्वरक आदी। इस तकनीक से खेती करने के लिए 80-85% आर्द्रता व लगभग 15-30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इस तकनीक के माध्यम से छोटे पौधों वाली फसलों की खेती की जा सकती है, जिसमें गाजर, शलजम, ककड़ी, मूली, आलू, गोभी, पालक, शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियां एवं फलों का उत्पादन कर सकते हैं।

हाइड्रोपोनिक खेती के फायदे:
हाइड्रोपोनिक खेती के कई फायदे हैं जो इसे पारंपरिक खेती से अलग और बेहतर बनाते हैं।
1. हाइड्रोपोनिक खेती में मिट्टी की जरूरत नहीं होती, जिससे मिट्टी से जुड़े रोगों और खरपतवार की समस्या नहीं होती और कीटनाशकों का प्रयोग भी घटता है। इसलिए यह उपज पूरी तरह से रसायन मुक्त और सुरक्षित होती है।
2. हाइड्रोपोनिक किसानों का जलवायु, तापमान, आर्द्रता, प्रकाश और वायु संरचना सहित पर्यावरण पर पूरा नियंत्रण होता है, जिसके कारण हर मौसम में सालभर फसलें उगाई जा सकती है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में सीमित स्थान में भी यह खेती की जा सकती है।
3. सामान्य खेती की अपेक्षा इस खेती की इस तकनीक से लगभग 90% तक पानी की बचत होती है। मिट्टी के पौधों की तुलना में हाइड्रोपोनिक पौधे पानी में जल्दी बढ़ते हैं।
4. हाइड्रोपोनिक खेती में पौधों को सीधे पानी से सारे पोषक तत्व मिल जाते हैं इसलिए ऐसी फसलों की क्वालिटी में वृद्धि होती है।
5. हाइड्रोपोनिक टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल खेती है जो ऑटोमेशन और टेक्नोलॉजी से संचालित होने के चलते कम श्रम में ज़्यादा परिणाम देती है।

हाइड्रोपोनिक खेती में कितनी लागत होती है?
हाइड्रोपोनिक खेती में शुरूआती निवेश पारंपरिक खेती की तुलना में थोड़ा अधिक होता है, लेकिन मुनाफा भी कहीं अधिक होता है। इस विधि से कम जगह में अधिक पौधे उगाए जा सकते हैं। इसलिए कुछ समय बाद इस विधि से किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। यदि आप छोटे स्तर पर इसकी शुरुआत करना चाहते हैं तो 100 वर्ग फुट में लगभग 200 पौधों को उगा सकते है। इसमें तकरीबन 50,000 से 60,000 रुपए तक का खर्च हो सकता है। इसके अलावा आप अपने घर या छत पर भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं।
हाइड्रोपोनिक खेती न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि यह शहरी क्षेत्रों के लिए एक उत्कृष्ट समाधान भी है, जहाँ स्थान की कमी होती है। यह तकनीक किसानों और उपभोक्ताओं के बीच एक नया विश्वास पैदा कर रही है- विश्वास एक ऐसी फसल पर जो शुद्ध, सुरक्षित और पोषक है। और ऐसी ही नई-नई उभरती भरोसेमंद तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने में एग्रीबाज़ार निरंतर अहम भूमिका निभा रहा है। यह भारत का अग्रणी डिजिटल एग्रीटेक प्लेटफॉर्म है, जो किसानों और कृषि उद्यमियों को न केवल आधुनिक तकनीकों से जोड़ता है, बल्कि उन्हें स्मार्ट खेती की पूरी सुविधा भी प्रदान करता है।