रबी सीजन 2025: चने की खेती क्यों बन रही है किसानों की पहली पसंद

रबी का मौसम शुरू होते ही खेतों में नई उम्मीदें जगने लगती हैं। किसान अपनी ज़मीन, मौसम और बाज़ार को ध्यान में रखकर यह तय करते हैं कि इस साल कौन-सी फसल उन्हें बेहतर पैदावार और अधिक मुनाफा दे सकती है। इन सभी विकल्पों में चना एक ऐसी फसल है, जिसने पिछले कई वर्षों में अपनी स्थिर मांग और बेहतर कीमतों की वजह से विशेष लोकप्रियता हासिल की है। यह सिर्फ एक सामान्य दाल नहीं, बल्कि ऐसी फसल है जो पोषण, उत्पादन और मुनाफे, इन तीनों स्तरों पर अपना मजबूत स्थान बनाए हुए है।

आज जब खेती प्रतिकूल मौसम और अनिश्चित बाज़ार भाव के कारण कई चुनौतियों से घिरी हुई है- ऐसे में किसान कुछ ऐसी फसलों की तलाश करते हैं जो कम लागत में सुरक्षित रिटर्न दे सकें और चना इन्हीं कुछ चुनिंदा फसलों में एक है, जो कम पानी-कम देखभाल और कम लागत में भी शानदार उत्पादन देती है। इसकी बढ़ती घरेलू मांग, जरूरतों और औद्योगिक उपयोगों ने इसे किसानों के लिए भरोसेमंद कमोडिटी और सुरक्षित कमाई का आधार बना दिया है। यही कारण है कि देश भर में रबी सीजन आते ही किसान चने की ओर अपना रुख मोड़ लेते हैं।

सिर्फ दाल नहीं, आय का मजबूत आधार है ‘चना’
चना भारत की प्रमुख दलहनी फसल है और इसकी खपत सालभर स्थिर रहती है। चने की दाल, बेसन, पापड़, नमकीन और स्नैक उद्योगों में इसका व्यापक उपयोग होता है, जिससे इसकी बाजार मांग कभी कम नहीं होती। यह एक ऐसी फसल है जिसे किसान बिना ज्यादा खर्च किए उगा सकते हैं और उपज अच्छी हो तो लंबे समय तक भंडारण करके बेहतर कीमत पर बेच भी सकते हैं। खास बात यह है कि चना मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाता है। इसकी जड़ों में मौजूद नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्षमता जमीन को पोषक तत्व वापस देती है, जिससे अगली फसल की पैदावार बेहतर होती है।

अनुकूल मौसम और मिट्टी
चना हल्की ठंड वाले, शुष्क मौसम में सबसे अच्छी पैदावार देता है। अक्टूबर से नवंबर तक का समय इसके बुवाई के लिए उचित माना जाता है, जब तापमान 18–25°C के बीच रहता है। हल्की ठंड इसकी बढ़वार में मदद करती है, जबकि पकने के समय सूखी हवा दानों को भरपूर बनाती है। लगातार नमी या पाला फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए मौसम का सही संतुलन बहुत आवश्यक है। मिट्टी की बात करें तो चना दोमट, हल्की काली और अच्छी जलनिकासी वाली भूमि में बेहतरीन उत्पादन देता है। पानी का ठहराव इसकी जड़ों को प्रभावित करता है, इसलिए जलभराव रहित भूमि इसके लिए सबसे उपयुक्त है। pH 6 से 7.5 वाली मिट्टी इसकी जड़ों को मजबूती देती है और फसल स्वस्थ रहती है।

सिंचाई और देखभाल
चना उन फसलों में है जिन्हें बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती। सामान्य परिस्थितियों में 2-3 बार सिंचाई ही पर्याप्त होती हैं – पहली फूल आने पर और दूसरी दाने बनने के समय। आवश्यकता से अधिक पानी देने पर विशेषत: फफूंदजनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। फसल की देखभाल में सबसे ज्यादा ध्यान रोग और कीट प्रबंधन पर देना होता है। चने की सुंडी और पत्ती झुलसा इसके सामान्य रोग हैं। बीज उपचार, खेत में साफ-सफाई, समय-समय पर निगरानी और उचित नियंत्रण उपायों से फसल सुरक्षित रहती है। साथ ही, निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण चने की बढ़वार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत में चना उत्पादन व सरकारी भूमिका
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चना उत्पादक देश है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। जलवायु और मिट्टी के अनुरूप यह फसल देश के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। वैज्ञानिक तकनीकें, नए बीज और मौसम आधारित सलाह ने इसकी पैदावार और किसान की आय दोनों को बढ़ाया है। केंद्र सरकार के ‘दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन’ ने चना किसानों को कई फायदे दिए हैं। उन्नत किस्मों के गुणवत्तापूर्ण बीज, नई तकनीकों पर प्रशिक्षण, प्रसंस्करण और भंडारण की बेहतर सुविधाएँ और मूल्य-श्रृंखला को मजबूत बनाने जैसी योजनाएँ किसानों की आय को बढ़ाने में मददगार साबित हुई हैं। इसके साथ ही MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) चने को एक सुरक्षित बाज़ार देता है, जिससे इसे बोना हमेशा एक भरोसेमंद सौदा साबित होता है।


चना क्यों है मुनाफे का सौदा?
किसानों के लिए चना कई तरह से एक लाभदायक विकल्प है। इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है क्योंकि उर्वरकों और सिंचाई की आवश्यकता सीमित होती है। बाज़ार में चना पूरे साल मांग में रहता है, जिससे किसानों को बेचने की चिंता कम होती है। यह फसल लंबे समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है, इसलिए किसान इसे सही मौके का इंतजार करते हुए बेहतर कीमत पर बेच सकते हैं। साथ ही सरकार द्वारा दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से किसानों को अतिरिक्त आर्थिक सुरक्षा भी मिलती है। 

और कौन-सी रबी फसलें हो सकती हैं लाभदायक?
रबी सीजन किसानों को कई विकल्प देता है। अपनी मिट्टी, पानी और बाजार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसान चने के साथ सरसों, मटर, गेहूं, धनिया, जीरा और सौंफ जैसी फसलें भी उगा सकते हैं। इनमें से सरसों और जीरा उच्च मूल्य वाली फसलें हैं, जबकि गेहूं और मटर स्थिर और भरोसेमंद उत्पादन देती हैं। मसाला फसलें जैसे धनिया और सौंफ बाजार में अच्छी कीमत दिलाती हैं। इन विविध विकल्पों की वजह से किसान अपनी आय को और सुरक्षित बना सकते हैं।


एग्रीबाज़ार और उसकी सहयोगी कंपनियों की भूमिका
आधुनिक कृषि में सिर्फ अच्छी फसल उगाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे सही दाम पर बेचना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसी दिशा में एग्रीबाज़ार और उसकी सहयोगी कंपनियाँ किसानों को निरंतर मदद करती है। ये किसानों को सीधे खरीदारों से जो़ड़कर सही दाम प्राप्त करने में मदद करते हैं। वहीं सहयोगी कंपनी स्टारएग्री की सुरक्षित वेयरहाउसिंग सुविधाओं का लाभ उठाते हुए किसान अपनी उपज को सुरक्षित रख सकते हैं और बेहतर बाजार भाव मिलने तक इंतजार कर सकते हैं। इसके अलावा, एग्रीवाइज कंपनी किसानों को स्टॉक आधारित तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे वे बिना मजबूरी के सही समय पर बिक्री कर पाते हैं। एग्रीबाज़ार की इन सर्वोत्तम सेवाओं ने किसानों की आय बढ़ाने और जोखिम कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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