जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण – निरंतर खेती के लिए भारतीय तकनीक

भारतीय कृषि क्षेत्र में नाइट्रोजन स्थिरीकरण काफी महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या आजीविका के लिए खेती पर निर्भर करती है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण की यह प्राकृतिक प्रक्रिया फसलों के लिए एक टिकाऊ और लागत प्रभावी नाइट्रोजन स्रोत प्रदान करती है। हवा में 78% नाइट्रोजन होता है लेकिन पेड़-पौधे इसे श्वसन के जरिए सीधे-सीधे उपयोग में नहीं ले पाते। परंतु इस प्रक्रिया द्वारा पौधे अपनी जड़ों के मार्फत नाइट्रोजन के यौगिकों को प्राप्त करते हैं। अगर मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन ना हो तो नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

दलहन-तिलहन की फलियां फसल का उत्पादन, मृदा उर्वरता बरकरार रखने एवं टिकाऊ खेती में एक अहम भूमिका निभाते है। सोयाबीन, छोले और दाल जैसी फलियां गैर-फली वाले पौधों में नाइट्रोजन के स्तर को बढ़ाने में मदद करती है। ये फ़सलें राइज़ोबिया बैक्टीरिया के साथ जुड़े होते हैं, जो पौधे की जड़ों पर रहते हैं। जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं, जिसका उपयोग पौधों के विकास के लिए कर सकते हैं।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण की जैव प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य से प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों के उपयोग से मानव निर्मित खाद पर होने वाले खर्चों में कमी की जा सकती है। 

नाइट्रोजन स्थिरीकरण उर्वरकों की लागत को कम कर खेती की लाभप्रदता में सुधार लाता है, जिससे किसानों पर वित्तीय बोझ कम हो सकता है। नाइट्रोजन-फिक्सिंग पौधे की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को जोड़ते हैं, जिससे मिट्टी की संरचना और जल प्रतिधारण में सुधार होता है, इससे फसल की पैदावार अधिक बढ़ सकती है और समय के अनुसार मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार हो सकता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता हैं। निश्चित ही स्थायी कृषि और पारिस्थितिक प्रबंधन पर लगातार बढ़ते फोकस को देखते हुए जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा।

फलीदार फसलों का उपयोग मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए प्रोटीन के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। किसानों के लिए यह प्रक्रिया काफी फायदेमंद है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण की अहमियत को समझते हुए किसानों को क्लोवर (दूब), सोयाबीन, अल्फाल्फा, ल्यूपिन, मूंगफली, मटर, चना, बीन और रूइबोस जैसी फलीदार फसलों का बड़ी मात्रा में उत्पादन करना चाहिए। नाइट्रोजन स्थिरीकरण में अपना अहम योगदान देने वाले इन फसलों के उत्पादन से किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। एग्रीबाज़ार किसानों को अपनी ई-मंडी के जरिए दलहन, सोयाबीन जैसी फसलों का आसानी से व्यापार की सुविधा प्रदान करता है और सीधे अधिकतम खरीददारों से जोड़कर बेहतर मंडी भाव पाने में मदद करता है।  

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